Famous Places:"Bindhyabasini Mata's Temple" | Converter: Unicode and Preeti Font | Newari Food: How to Make Chatamari (Newari Pizza)?


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The Barha Bhairav Dance of Pokhara

The 12 Bhairav dance is the pride of Pokhareli Newari Community which is perferming in every 6 years.

The Beautiful City of Nepal

Pokhara is one of the most extra-ordinary and most beautiful places in the world.~Toni Hagen(1961)

Taal Barahi Temple Surrounded by Lake

पोखरा उपत्यकाको मात्रै नभई कास्की जिल्लाकै सुप्रसिद्ध देवीको नाम हो तालवाराही । तालवाराहीको इतिहासको सन्दर्भमा चर्चा गर्नु पर्दा तत्कालिन कास्कीका राजा ,कुलमण्डन शाहद्वारा यो मन्दिरको स्थापना गरिएको बताइन्छ ।

The Newari Pizza -CHATAMARI

Once you have the Chatamari (Newari Pizza) then You'll forget the real pizza. You'll want it again and again.

The Bindhyabasini Temple on the hill

A famous temple of Pokhara valley and prestigious Shaktipith is an important attraction . This famous temple is in northern side of Pokhara.

Monday, February 10, 2014

Jai Ho (2014) 720p Hindi DVDSCR Rip x264


The film is a remake of 2006's Telegu film Staline starring Chirajeevi and was released on 24 January 2014 Where Tabu played as Salman's sister and Danny played the main antagoist.
An Ex-Army Officer initiates a unique idea of propagating socila responsiblitty among ordinary people and in doing so, crosses paths with a powerful political family.

The main Dialogue of the Film: Don't say thanks. Instead help 3 people whenever you get chance and tell them to help 3 other people.

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sayari 1

सही कहते हैं लोग,
सबका दिल हम
खुश कर नहीं सकते ।
दुनिया में अपना दिल
तोड्ना पड्ता है
किसीका दिल जोड्ने के लिए ।

जिन्दगी से जो
लम्हा मिले उसे चुरा लो,
जिन्दगी प्यार से
अपनी सजा लो ।
जिन्दगी यूँ ही
गुजर जायेगी,
बस कभी खुद हँसो,

तो कभी रोते हुएको हँसा लो ।

Old MACDONALD had a farm EE I EE I OH

Old MACDONALD had a farm
EE I EE I OH
And on that farm he had a cows
EE I EE I OH
With a moo moo here
And a moo moo there
Here a moo, there a moo
Everywhere a moo moo
Old MacDonald had a farm
EE I EE I OH

Old MACDONALD had a farm
EE I EE I OH
And on that farm he had some chickens
EE I EE I OH
With a cluck cluck here
And a cluck cluck there
Here a cluck, there a cluck
Everywhere a cluck cluck
With a moo moo here
And a moo moo there
Here a moo, there a moo
Everywhere a moo moo
Old MacDonald had a farm
EE I EE I OH

Old MACDONALD had a farm
EE I EE I OH
And on that farm he had some sheep
EE I EE I OH
With a baa-baa here
And a baa-baa there
Here a baa, there a baa
Everywhere a baa baa
With a cluck cluck here
And a cluck cluck there
Here a cluck, there a cluck
Everywhere a cluck cluck
With a moo moo here
And a moo moo there
Here a moo, there a moo
Everywhere a moo moo
Old MacDonald had a farm
EE I EE I OH

Old MACDONALD had a farm
EE I EE I OH
And on that farm he had a pigs
EE I EE I OH
With a oink oink here
And a oink oink there
Here a oink, there a oink
Everywhere a oink oink
With a baa-baa here
And a baa-baa there
Here a baa, there a baa
Everywhere a baa baa
With a cluck cluck here
And a cluck cluck there
Here a cluck, there a cluck
Everywhere a cluck cluck
With a moo moo here
And a moo moo there
Here a moo, there a moo
Everywhere a moo moo
Old MacDonald had a farm
EE I EE I OH

Old MACDONALD had a farm
EE I EE I OH
And on that farm he had a ducks
EE I EE I OH
With a quack quack here
And a quack quack there
Here a quack, there a quack
Everywhere a quack quack
With a oink oink here
And a oink oink there
Here a oink, there a oink
Everywhere a oink oink
With a baa-baa here
And a baa-baa there
Here a baa, there a baa
Everywhere a baa baa
With a cluck cluck here
And a cluck cluck there
Here a cluck, there a cluck
Everywhere a cluck cluck
With a moo moo here
And a moo moo there
Here a moo, there a moo
Everywhere a moo moo
Old MacDonald had a farm

EE I EE I OH

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥

श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
श्रीगणेशायनम:
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य
बुधकौशिक ऋषि:
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता
अनुष्टुप् छन्द:
सीता शक्ति:
श्रीमद्हनुमान् कीलकम्
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
अथ ध्यानम्
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्
इति ध्यानम्
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक:
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां : सुकृती पठॆत्
चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:
द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्
नरो लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्
: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् : प्रभु: ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति संशय: ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु
नान्यं जाने नैव जाने जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे जनकात्मजा
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्
श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु
बुधकौशिक ऋषि


१६ कला का ज्ञान..

16 kalas(Shodash kala)१६ कला का ज्ञान..

1.
वाक् सिद्धि : जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं!

2.
दिव्य दृष्टि: दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं!

3.
प्रज्ञा सिद्धि : प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें!

4.
दूरश्रवण : इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता!

5.
जलगमन : यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो!

6.
वायुगमन : इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं!

7.
अदृश्यकरण : अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं!

8.
विषोका : इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं!

9.
देवक्रियानुदर्शन : इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं!

10.
कायाकल्प : कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं!

11.
सम्मोहन : सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं!

12.
गुरुत्व : गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं!

13.
पूर्ण पुरुषत्व : इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की!

14.
सर्वगुण संपन्न : जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसेदया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं!

15.
इच्छा मृत्यु : इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं!

16.
अनुर्मि : अनुर्मि का अर्थ हैं-जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव हो!

यह समस्त संसार द्वंद्व धर्मों से आपूरित हैं, जितने भी यहाँ प्राणी हैं, वे सभी इन द्वंद्व धर्मों के वशीभूत हैं, किन्तु इस कला से पूर्ण व्यक्ति प्रकृति के इन बंधनों से ऊपर उठा हुआ होता हैं!

ये कला सभी मनुष्य में पाई जाती है पर उस ज्ञान मनुष्य को नहीं होता ,
ऐसे मैं ये अज्ञानता वश वो आपने आप को हर जगह असहाय पता है। . 
१६ कला का ज्ञान आप को भी हो सकता है। . पर आब इसे अरबो की आबादी मैं गुरु या ही मिलेगे जो ऐसा ज्ञान आपने शिष्यों को प्रदान कर पते है 

ये ज्ञान खुद आपने आप पाया नहीं जा सकता है। . क्योंकी मनुष्य ने आपने आप को बहुत छोटा बना लिया और चाह की कमी हो जाती है तो और मुस्किल भरा हो जाता है। .

ये ज्ञान गुरु पादुका पूजन से सकता है जब आप अपने गुरु को पहचान सके 
एकाकार होने की भावना हो समर्पण की भावना हो। शिष्य बनने की भावना हो 

परमपूज्य गुरुदेव निखिलेश्वरानंद

 
  • 12 Bhirav Dance

    The 12 Bhairav Dance

    The 12 Bhairav dance is the pride of Pokhareli Newari Community which is perferming in every 6 years.

  • Bindhyabasini Mata

    Bindhyabasini Mata's Temple

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  • Old Pokhara

    The Beautiful City 'Pokhara'

    Pokhara is one of the most extra-ordinary and most beautiful places in the world.~Toni Hagen(1961)

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  • How to make Chatamari

    Chatamari(Newari Pizza)

    Once you have the Chatamari (Newari Pizza) then You'll forget the real pizza. You'll want it again and again.